करवा चौथ:
करवा चौथ का व्रत कार्तिक हिन्दू माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान
किया जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग जिसका अनुसरण गुजरात, महाराष्ट्र, और
दक्षिणी भारत में किया जाता है, के अनुसार करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता
है। हालाँकि यह केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी
राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है।
करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने
का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु
के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं।
विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान
गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ
अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे
अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक
किया जाता है।
करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक
मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ
कहलाता है, किया जाता है। पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और
इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी दिया जाता है।
करवा चौथ दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है।
करवा चौथ के चार दिन बाद पुत्रों की दीर्घ आयु और समृद्धि के लिए अहोई
अष्टमी व्रत किया जाता है।
करवा चौथ व्रत कथा:
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक
ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात
महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों
की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ
अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।
जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई।
शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों
के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत
के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर
जमीन पर गिर गई।
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी।
वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये
बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी
भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें
से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब
वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि
चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये।
वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर
लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल
वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को
तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने
लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर
में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल
पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के
दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी।
उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है,
वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की
मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से
विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि
उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण
उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा
चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह
दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के
साथ करती। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका
पति पुनः प्राप्त हो गया।
करवा चौथ व्रत विधि :-
करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
( पूजा की थाली में रोली, चावल, पानी से भरा करवा लोटा, मिठाई, दिया और
सिंदूर रखें। पंजाब में व्रत रखने वाली महिलाएं थाली में स्टील की छननी,
पानी भरा गिलास और लाल धागा रखती हैं तो वहीं पर राजस्थान में महिलाएं
गेहूं, मिट्टी आदि रखती हैं। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस
मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे। बालू
अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं
चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर
देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।)
* व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ
व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये
करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
* पूरे दिन निर्जला रहें।
* दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें।
इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
* आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
* पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
* गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को
चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
* जल से भरा हुआ लोटा रखें।
* वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं
और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
* रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
* गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु
की कामना करें।
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां
नारीणां हरवल्लभे॥'
* करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा
चौथ की कथा कहें या सुनें।
* कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद
लें और करवा उन्हें दे दें।
* तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
* रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और
चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
* इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
आंतरजालावरून साभार - ई-मेल फॉरवर्ड - आभार - लेखक / कवी
करवा चौथ का व्रत कार्तिक हिन्दू माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी के दौरान
किया जाता है। अमांत पञ्चाङ्ग जिसका अनुसरण गुजरात, महाराष्ट्र, और
दक्षिणी भारत में किया जाता है, के अनुसार करवा चौथ अश्विन माह में पड़ता
है। हालाँकि यह केवल माह का नाम है जो इसे अलग-अलग करता है और सभी
राज्यों में करवा चौथ एक ही दिन मनाया जाता है।
करवा चौथ का दिन और संकष्टी चतुर्थी, जो कि भगवान गणेश के लिए उपवास करने
का दिन होता है, एक ही समय होते हैं। विवाहित महिलाएँ पति की दीर्घ आयु
के लिए करवा चौथ का व्रत और इसकी रस्मों को पूरी निष्ठा से करती हैं।
विवाहित महिलाएँ भगवान शिव, माता पार्वती और कार्तिकेय के साथ-साथ भगवान
गणेश की पूजा करती हैं और अपने व्रत को चन्द्रमा के दर्शन और उनको अर्घ
अर्पण करने के बाद ही तोड़ती हैं। करवा चौथ का व्रत कठोर होता है और इसे
अन्न और जल ग्रहण किये बिना ही सूर्योदय से रात में चन्द्रमा के दर्शन तक
किया जाता है।
करवा चौथ के दिन को करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। करवा या करक
मिट्टी के पात्र को कहते हैं जिससे चन्द्रमा को जल अर्पण, जो कि अर्घ
कहलाता है, किया जाता है। पूजा के दौरान करवा बहुत महत्वपूर्ण होता है और
इसे ब्राह्मण या किसी योग्य महिला को दान में भी दिया जाता है।
करवा चौथ दक्षिण भारत की तुलना में उत्तरी भारत में ज्यादा प्रसिद्ध है।
करवा चौथ के चार दिन बाद पुत्रों की दीर्घ आयु और समृद्धि के लिए अहोई
अष्टमी व्रत किया जाता है।
करवा चौथ व्रत कथा:
बहुत समय पहले इन्द्रप्रस्थपुर के एक शहर में वेदशर्मा नाम का एक
ब्राह्मण रहता था। वेदशर्मा का विवाह लीलावती से हुआ था जिससे उसके सात
महान पुत्र और वीरावती नाम की एक गुणवान पुत्री थी। क्योंकि सात भाईयों
की वह केवल एक अकेली बहन थी जिसके कारण वह अपने माता-पिता के साथ-साथ
अपने भाईयों की भी लाड़ली थी।
जब वह विवाह के लायक हो गयी तब उसकी शादी एक उचित ब्राह्मण युवक से हुई।
शादी के बाद वीरावती जब अपने माता-पिता के यहाँ थी तब उसने अपनी भाभियों
के साथ पति की लम्बी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। करवा चौथ के व्रत
के दौरान वीरावती को भूख सहन नहीं हुई और कमजोरी के कारण वह मूर्छित होकर
जमीन पर गिर गई।
सभी भाईयों से उनकी प्यारी बहन की दयनीय स्थिति सहन नहीं हो पा रही थी।
वे जानते थे वीरावती जो कि एक पतिव्रता नारी है चन्द्रमा के दर्शन किये
बिना भोजन ग्रहण नहीं करेगी चाहे उसके प्राण ही क्यों ना निकल जायें। सभी
भाईयों ने मिलकर एक योजना बनाई जिससे उनकी बहन भोजन ग्रहण कर ले। उनमें
से एक भाई कुछ दूर वट के वृक्ष पर हाथ में छलनी और दीपक लेकर चढ़ गया। जब
वीरावती मूर्छित अवस्था से जागी तो उसके बाकी सभी भाईयों ने उससे कहा कि
चन्द्रोदय हो गया है और उसे छत पर चन्द्रमा के दर्शन कराने ले आये।
वीरावती ने कुछ दूर वट के वृक्ष पर छलनी के पीछे दीपक को देख विश्वास कर
लिया कि चन्द्रमा वृक्ष के पीछे निकल आया है। अपनी भूख से व्याकुल
वीरावती ने शीघ्र ही दीपक को चन्द्रमा समझ अर्घ अर्पण कर अपने व्रत को
तोड़ा। वीरावती ने जब भोजन करना प्रारम्भ किया तो उसे अशुभ संकेत मिलने
लगे। पहले कौर में उसे बाल मिला, दुसरें में उसे छींक आई और तीसरे कौर
में उसे अपने ससुराल वालों से निमंत्रण मिला। पहली बार अपने ससुराल
पहुँचने के बाद उसने अपने पति के मृत शरीर को पाया।
अपने पति के मृत शरीर को देखकर वीरावती रोने लगी और करवा चौथ के व्रत के
दौरान अपनी किसी भूल के लिए खुद को दोषी ठहराने लगी। वह विलाप करने लगी।
उसका विलाप सुनकर देवी इन्द्राणी जो कि इन्द्र देवता की पत्नी है,
वीरावती को सान्त्वना देने के लिए पहुँची।
वीरावती ने देवी इन्द्राणी से पूछा कि करवा चौथ के दिन ही उसके पति की
मृत्यु क्यों हुई और अपने पति को जीवित करने की वह देवी इन्द्राणी से
विनती करने लगी। वीरावती का दुःख देखकर देवी इन्द्राणी ने उससे कहा कि
उसने चन्द्रमा को अर्घ अर्पण किये बिना ही व्रत को तोड़ा था जिसके कारण
उसके पति की असामयिक मृत्यु हो गई। देवी इन्द्राणी ने वीरावती को करवा
चौथ के व्रत के साथ-साथ पूरे साल में हर माह की चौथ को व्रत करने की सलाह
दी और उसे आश्वासित किया कि ऐसा करने से उसका पति जीवित लौट आएगा।
इसके बाद वीरावती सभी धार्मिक कृत्यों और मासिक उपवास को पूरे विश्वास के
साथ करती। अन्त में उन सभी व्रतों से मिले पुण्य के कारण वीरावती को उसका
पति पुनः प्राप्त हो गया।
करवा चौथ व्रत विधि :-
करवा चौथ की आवश्यक संपूर्ण पूजन सामग्री को एकत्र करें।
( पूजा की थाली में रोली, चावल, पानी से भरा करवा लोटा, मिठाई, दिया और
सिंदूर रखें। पंजाब में व्रत रखने वाली महिलाएं थाली में स्टील की छननी,
पानी भरा गिलास और लाल धागा रखती हैं तो वहीं पर राजस्थान में महिलाएं
गेहूं, मिट्टी आदि रखती हैं। काली मिट्टी में शक्कर की चासनी मिलाकर उस
मिट्टी से तैयार किए गए मिट्टी के करवे अथवा तांबे के बने हुए करवे। बालू
अथवा सफेद मिट्टी की वेदी पर शिव-पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश एवं
चंद्रमा की स्थापना करें। मूर्ति के अभाव में सुपारी पर नाड़ा बाँधकर
देवता की भावना करके स्थापित करें। पश्चात यथाशक्ति देवों का पूजन करें।)
* व्रत के दिन प्रातः स्नानादि करने के पश्चात यह संकल्प बोलकर करवा चौथ
व्रत का आरंभ करें- 'मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये
करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।'
* पूरे दिन निर्जला रहें।
* दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें।
इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है।
* आठ पूरियों की अठावरी बनाएं। हलुआ बनाएं। पक्के पकवान बनाएं।
* पीली मिट्टी से गौरी बनाएं और उनकी गोद में गणेशजी बनाकर बिठाएं।
* गौरी को लकड़ी के आसन पर बिठाएं। चौक बनाकर आसन को उस पर रखें। गौरी को
चुनरी ओढ़ाएं। बिंदी आदि सुहाग सामग्री से गौरी का श्रृंगार करें।
* जल से भरा हुआ लोटा रखें।
* वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं
और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें।
* रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं।
* गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। पति की दीर्घायु
की कामना करें।
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां
नारीणां हरवल्लभे॥'
* करवा पर 13 बिंदी रखें और गेहूं या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा
चौथ की कथा कहें या सुनें।
* कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर अपनी सासुजी के पैर छूकर आशीर्वाद
लें और करवा उन्हें दे दें।
* तेरह दाने गेहूं के और पानी का लोटा या टोंटीदार करवा अलग रख लें।
* रात्रि में चन्द्रमा निकलने के बाद छलनी की ओट से उसे देखें और
चन्द्रमा को अर्घ्य दें।
* इसके बाद पति से आशीर्वाद लें। उन्हें भोजन कराएं और स्वयं भी भोजन कर लें।
पूजन के पश्चात आस-पड़ोस की महिलाओं को करवा चौथ की बधाई देकर पर्व को संपन्न करें।
आंतरजालावरून साभार - ई-मेल फॉरवर्ड - आभार - लेखक / कवी
I just wanted to add a comment to mention thanks for your post. This post is really interesting and quite helpful for us. Keep sharing.
ReplyDeletekarwa chauth