मुझे अयोध्या न देना.. न मुझे बाबरी देना
जो तारिख मे हो बात, वो खरी खरी देना
मेरे अल्लाह ने जाकर मेरे भगवान से कहा हे
मे तुझे केसरी कमिज दुंगा तु मुझको हरी देना
अगर इतना भि होता तो भी क्या बात थी यारो
के किसे भी कोई बेचे ना, कोई किसे खरीदे ना
मै हिंदु न मुस्लमान हुं इन्सान का खुन हुं
यारो यकीं न आये तो ला तो… छुरी देना
मेरे जख्मो पे आके तेरे आंसु लौट जाते है
मुझे जो घांव भी दो तो युं मरमरी देना
तेरा वो पुछना अक्सर सवाल लाखो जुबानो मै
और मेरा अक्सर जवाब, जुबाने मादरी देना
मेरे सरकार ने जाते हुये यादे है ये बोई
दो मुल्क के शक्लो मे आजादी अधमरी देना
मेरा "मुसा" ने मेरे "कान्हा" से किं हे युं जुगलबंदी
मे दिलरुबा से साज दुं, तु अपनी बांसुरी देना
मुझे मंदीर मे जाके मथ्था टेकना रास ना आये
ना भाये दिल को मेरे मस्जिद मे जाके हाजरी देना
बुलाने से मेरे मातम पे वो आये नही यारो
खुदा गर मौत भी दे तो युं ना बुरी देना
आनेवाली नस्लो के रगों मे ख्वाब बोने है
उन्हे गर रास्ते दोगे तो वो भी अंबरी देना
मेरे आगे मेरा कातिल खडा है हाथ को बांधे
मुझे इतनी दे ताकत आसां हो मुझे उसको बरी देना
साभार - मकरंद सखाराम सावंत
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